ऐसे अवसर कम ही होते हैं जब एक ही तरह की ख़बर दुनिया के हर कोने से आ रही हो. पिछले सप्ताह ऐसा ही हुआ, जब एक बुरी ख़बर पहले अमरीका से आई, उसके बाद अमरीकी महाद्वीप के कनाडा और ब्राज़ील जैसे देशों से, फिर ब्रिटेन से, उसके बाद ऑस्ट्रेलिया से और अंत में वही ख़बर भारत से भी मिली. ये समाचार था मधुमक्खियों की आबादी में तेज़ी से आ रही गिरावट का.
अमरीका से ख़बर आई कि एक रहस्मय बीमारी ने मधुमक्खियों को अपना निशाना बनाया है जिसके कारण मधुमक्खियों के छत्ते या मधुमक्खी पालन करने वालों के छत्ताबक्से अचानक बिना किसी पूर्व चेतावनी के उजाड़ हो रहे हैं. मधुमक्खियाँ अपने अंडे-बच्चे और शहद को छोड़ कर ग़ायब हो रही हैं. विशेषज्ञों ने इस अभूतपूर्व घटना को Colony Collapse Disorder या CCD का नाम दिया है.
माना जाता है कि सीसीडी अमरीका के मधुमक्खी छत्तों या छत्तापेटिकाओं में से एक चौथाई का सत्यानाश कर चुकी है. देखते ही देखते इस बीमारी ने अमरीकी महाद्वीप के ब्राज़ील और कनाडा जैसे देशों में भी अपने पैर पसार दिए हैं.
ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देशों में भी मधुमक्खियों की आबादी में भारी गिरावट की बात मानी जा रही है. भारत में मधुमक्खियों पर ख़तरे की ख़बर जम्मू-कश्मीर से आई है, और स्थानीय विशेषज्ञों ने इसके लिए T. Clarea और Vorroa नामक दो परजीवियों को दोषी ठहराया है. और ऑस्ट्रेलिया में तो केंद्र सरकार ने मधुमक्खियों पर आए ख़तरे पर विचार के लिए एक संसदीय समिति का गठन कर दिया है. माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया की मधुमक्खियों का संकट Verroa जैसे परजीवी कीटों के हमले के अलावा जंगलों में लगने वाली आग के चलते भी है.
उपरोक्त कारणों के अलावा भी कई कारण दिए जा रहे हैं मधुमक्खियों की संख्या घटते जाने के पीछे, जैसे- जीन संवर्द्धित फसल, ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण, हानिकारक विकिरण आदि-आदि.
अब कारण चाहे जो भी हो, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मधुमक्खियों की आबादी घटते जाने की ख़बर आतंकवाद के ख़ूनी प्रसार की ख़बर से भी ज़्यादा चिंतनीय है. परागण की प्रक्रिया से जुड़े कृषि उत्पादों में से 80 प्रतिशत मधुमक्खियों पर आश्रित होते हैं. इसका सीधा-सरल मतलब ये हुआ कि मानव उपभोग के खाद्य पदार्थों में से एक तिहाई का अस्तित्व मधुमक्खियों से सीधा जुड़ा हुआ है.
इसलिए इस कथन में दम लगता है(जिसे कई स्रोत आइंस्टाइन की उक्ति बताते हैं)- "यदि पृथ्वी से मधुमक्खियों का अस्तित्व समाप्त हो जाए तो मानव जाति चार वर्षों तक ही बच पाएगी. यदि मधुमक्खियाँ नहीं होंगी, तो परागण नहीं होगा, ...तो पौधे नहीं होंगे, ...तो जानवर नहीं होंगे, ...तो जीवन नहीं होगा!"
कहते हैं जब तॉल्सतॉय ने सब कुछ छोड़ दिया- माँस, तंबाकू और यहाँ तक कि धर्म भी- उसके बाद भी अपनी मधुमक्खियों से उनका लगाव नहीं छूटा था. मधुमक्खियों को शुरू से ही मानव जाति का मित्र माना जाता रहा है. मनुष्यों की तरह ही मधुमक्खियाँ भी सामाजिक प्राणीयों के वर्ग में आती हैं. वो भी आमजनों की तरह मेहनतकश होती हैं. इसलिए मधुमक्खियों की आबादी घटते जाने पर चिंता सिर्फ़ सरकारों और मधुमक्खी पालकों को ही नहीं, बल्कि हम सबको होनी चाहिए.
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2 टिप्पणियां:
Sach mein Chinta ki baat hai. Climate change ka hi chakkar lagta hai.
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