इस बात को न जाने कितने तरीक़े से, कितने अलग-अलग मुहावरों के साथ कहा गया होगा कि भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक मतभेद चाहे जितना भी हो दोनों तरफ़ की आम जनता की दिलचस्पी सिर्फ़-और-सिर्फ़ शांति और भाईचारे में है. और दोनों ओर की आबादी के बहुमत की इस आम राय की बुनियाद है- साझी विरासत.
संगीत के क्षेत्र में इस साझी विरासत का बेजोड़ नमूना देखने को मिला इसी सप्ताह मुंबई और कराची से प्रसारित एक साझे संगीत कार्यक्रम में. कार्यक्रम का नाम भी बिल्कुल ही सटीक था- सुर का रिश्ता. मुख्य कलाकार- शुभा मुदगल और आबिदा परवीन.
सौजन्य- बीबीसी की हिंदी और उर्दू सेवा.
कार्यक्रम में अन्य प्रमुख अतिथि थे- भारत से जावेद अख़्तर, गोविंद निहलानी और किरन खेर, जबकि पाकिस्तान से भी लेखक अनवर मक़सूद समेत कई प्रमुख हस्तियों ने संगीत की सुर-लहरी के बीच भारत-पाकिस्तान संबंधों पर विचार-विमर्श किया.
तो देर किस बात की. नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें और पौन घंटे(अफ़सोस कि दो घंटे के इस कार्यक्रम का पूरा वीडियो अभी अनुपलब्ध है) के लिए दुनियादारी से दूर सुरों की दुनिया में खो जाएँ.
सुर का रिश्ता- वीडियो देखने के लिए क्लिक करें
क्लिक करने से बात नहीं बनती हो तो निम्नांकित लिंक को ब्राउज़र में पेस्ट करें-
http://www.bbc.co.uk/urdu/meta/tx/vi/mumbai_joint_vi_nb.ram
गुरुवार, सितंबर 29, 2005
गुरुवार, सितंबर 22, 2005
तूफ़ान अल्फ़ा, तूफ़ान बीटा
अमरीका में कैटरिना तूफ़ान की विभीषिका के दृश्य अभी टेलीविज़न स्क्रीन से हटे भी नहीं थे कि रीटा नामक तूफ़ान सुर्खियों में आ गया. हाल के वर्षों में पहले से कहीं ज़्यादा संख्या में समुद्री तूफ़ान आ रहे हैं, लेकिन इस साल तो हद ही हो गई है. वर्ष 2005 में अटलांटिक महासागर में इतने समुद्री तूफ़ान आ चुके हैं कि तूफ़ानों को नाम देने के काम का समन्वय करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन वर्ल्ड मिटिरोलॉजिकल ऑर्गेनाइज़ेशन(डब्ल्यूएमओ) के सामने अभूतपूर्व समस्या उठ खड़ी हुई है. उसे डर है कि कहीं पहले से निर्धारित नाम ख़त्म न हो जाएँ और तूफ़ानों के नाम अल्फ़ा, बीटा, गामा आदि रखने की नौबत नहीं आ जाए.
अटलांटिक महासागर में उठने वाले तूफ़ानों की बात करें तो पूरे साल के लिए अँगरेज़ी वर्णमाला के पहले अक्षर 'ए' से शुरू करके 'डब्ल्यू' तक 21 नाम रखे जाते हैं(इस तरह के 21 नामों वाले छह सालाना सेट बनाए गए हैं, जो कि क्रम से प्रयोग किए जाते हैं. क़्यू, यू, एक्स, वाई और ज़े वाले नामों को नहीं लिया गया है क्योंकि इन अक्षरों से ज़्यादा नाम नहीं बनते.). तूफ़ान जिस क्रम से आते हैं उसी तरह उनका नाम होता है. मिसाल के तौर पर इस वर्ष अटलांटिक महासागर में आए पहले तूफ़ान का नाम एरलिन था और आख़िरी तूफ़ान का नाम होगा--विल्मा. लेकिन किसी साल में अगर 21 से अधिक तूफ़ान आ जाएँ तो उन्हें ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों के नाम से पुकारा जाता है-- जैसे अल्फ़ा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि.
इस साल अटलांटिक महासागर में कैटरिना और रीटा समेत 17 भयानक तूफ़ान उठ चुके हैं, यानि अभी साल ख़त्म होने में तीन महीने से ज़्यादा का वक़्त है और मात्र चार नाम स्टैन, टैमी, विन्सी और विल्मा ही शेष बचे हैं. ऐसे में डब्ल्यूएमओ को डर है कि नाम के लिए संभवत: पहली बार उसे अल्फ़ा, बीटा और गामा जैसे ग्रीक अक्षरों का उपयोग करना पड़ सकता है.
दुनिया का दो तिहाई से ज़्यादा हिस्सा जल का है और तूफ़ान पानी के कारण ही, ख़ास कर समुद्री जल के तापमान से संचालित होते हैं. ऐसे में दुनिया भर में पूरे साल कहीं न कहीं तूफ़ान उठते रहते हैं. डब्ल्यूएमओ ने पहले ही नामकरण की सुविधा के चलते दुनिया भर के समुद्री तूफ़ानों को तीन विशेष वर्ग में बाँट रखा है. उत्तरी प्रशांत महासागर में उठने वाले तूफ़ान टाइफ़ून कहे जाते हैं, अटलांटिक महासागर में उठने वाले तूफ़ान हरिकेन और बाकी विश्व(बंगाल की खाड़ी भी इसी वर्ग में आता है) में उठने वाले बड़े समुद्री तूफ़ान साइक्लॉन (चक्रवात) कहलाते हैं.
आख़िर तूफ़ानों को अलग-अलग नाम देने की ज़रूरत ही क्यों पड़ती है? इस बारे में डब्ल्यूएमओ का मानना है कि चूँकि साल भर में दुनिया में औसत 80 बड़े समुद्री तूफ़ान उठते हैं, इसलिए उनमें अंतर करने के लिए अलग-अलग नाम देना ज़रूरी बन जाता है. ऐसा मौसम के अध्ययन और संचार में सुविधा की दृष्टि से किया जाता है क्योंकि हर तूफ़ान के बनने की दशा अपने आप में विशिष्ट होती है. यदि 33 डिग्री नार्दर्न अटलांटिक हरिकेन के बदले किसी तूफ़ान को नैंसी या विम्पी कहा जाए तो ज़ाहिर है ये सबके लिए सुविधाजनक होगा.
उल्लेखनीय है कि पहले तूफ़ानों के नाम सिर्फ़ महिलाओं के नाम ही होते थे, लेकिन महिला अधिकारवादियों ने आपत्ति उठाई कि तबाही का नाम महिलाओं का नाम ही क्यों हो. आख़िरकार 1970 के दशक से तूफ़ानों के नामों में पुरुष नाम भी रखे जाने लगे.
एक और दिलचस्प बात है भयंकर तूफ़ानों के नामों की सेवानिवृति. यदि कोई तूफ़ान विशेष कुछ ज़्यादा ही विनाशकारी साबित हो तो उसे नामों के सालाना सेट से रिटायर कर दिया जाता है. उसकी जगह कोई और नाम रखा जाता है. जैसे 2001 में ओपल को रिटायर करके उसकी जगह ओल्गा नाम को शामिल किया गया. रिटायरमेंट की व्यवस्था इसलिए है कि लोग विनाशकारी तूफ़ान को हमेशा याद रख सकें. ऐसे में कोई संदेह नहीं की कैटरिना नाम भी तूफ़ानों की दोहराई जाने वाली सूची से हटा लिया जाएगा.
अब जबकि अमरीका को प्रभावित करने वाले अटलांटिक महासागर के तूफ़ानों के नाम के टोटे पड़ने की संभावना है, क्या हम उम्मीद करें कि जॉर्ज बुश को ग्लोबल वार्मिंग के ख़तरे का अंदाज़ा हो सकेगा और वे पर्यावरण प्रदूषण के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्य क्योटो संधि में अमरीका को भी शामिल कर सकेंगे!
अटलांटिक महासागर में उठने वाले तूफ़ानों की बात करें तो पूरे साल के लिए अँगरेज़ी वर्णमाला के पहले अक्षर 'ए' से शुरू करके 'डब्ल्यू' तक 21 नाम रखे जाते हैं(इस तरह के 21 नामों वाले छह सालाना सेट बनाए गए हैं, जो कि क्रम से प्रयोग किए जाते हैं. क़्यू, यू, एक्स, वाई और ज़े वाले नामों को नहीं लिया गया है क्योंकि इन अक्षरों से ज़्यादा नाम नहीं बनते.). तूफ़ान जिस क्रम से आते हैं उसी तरह उनका नाम होता है. मिसाल के तौर पर इस वर्ष अटलांटिक महासागर में आए पहले तूफ़ान का नाम एरलिन था और आख़िरी तूफ़ान का नाम होगा--विल्मा. लेकिन किसी साल में अगर 21 से अधिक तूफ़ान आ जाएँ तो उन्हें ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों के नाम से पुकारा जाता है-- जैसे अल्फ़ा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि.
इस साल अटलांटिक महासागर में कैटरिना और रीटा समेत 17 भयानक तूफ़ान उठ चुके हैं, यानि अभी साल ख़त्म होने में तीन महीने से ज़्यादा का वक़्त है और मात्र चार नाम स्टैन, टैमी, विन्सी और विल्मा ही शेष बचे हैं. ऐसे में डब्ल्यूएमओ को डर है कि नाम के लिए संभवत: पहली बार उसे अल्फ़ा, बीटा और गामा जैसे ग्रीक अक्षरों का उपयोग करना पड़ सकता है.
दुनिया का दो तिहाई से ज़्यादा हिस्सा जल का है और तूफ़ान पानी के कारण ही, ख़ास कर समुद्री जल के तापमान से संचालित होते हैं. ऐसे में दुनिया भर में पूरे साल कहीं न कहीं तूफ़ान उठते रहते हैं. डब्ल्यूएमओ ने पहले ही नामकरण की सुविधा के चलते दुनिया भर के समुद्री तूफ़ानों को तीन विशेष वर्ग में बाँट रखा है. उत्तरी प्रशांत महासागर में उठने वाले तूफ़ान टाइफ़ून कहे जाते हैं, अटलांटिक महासागर में उठने वाले तूफ़ान हरिकेन और बाकी विश्व(बंगाल की खाड़ी भी इसी वर्ग में आता है) में उठने वाले बड़े समुद्री तूफ़ान साइक्लॉन (चक्रवात) कहलाते हैं.
आख़िर तूफ़ानों को अलग-अलग नाम देने की ज़रूरत ही क्यों पड़ती है? इस बारे में डब्ल्यूएमओ का मानना है कि चूँकि साल भर में दुनिया में औसत 80 बड़े समुद्री तूफ़ान उठते हैं, इसलिए उनमें अंतर करने के लिए अलग-अलग नाम देना ज़रूरी बन जाता है. ऐसा मौसम के अध्ययन और संचार में सुविधा की दृष्टि से किया जाता है क्योंकि हर तूफ़ान के बनने की दशा अपने आप में विशिष्ट होती है. यदि 33 डिग्री नार्दर्न अटलांटिक हरिकेन के बदले किसी तूफ़ान को नैंसी या विम्पी कहा जाए तो ज़ाहिर है ये सबके लिए सुविधाजनक होगा.
उल्लेखनीय है कि पहले तूफ़ानों के नाम सिर्फ़ महिलाओं के नाम ही होते थे, लेकिन महिला अधिकारवादियों ने आपत्ति उठाई कि तबाही का नाम महिलाओं का नाम ही क्यों हो. आख़िरकार 1970 के दशक से तूफ़ानों के नामों में पुरुष नाम भी रखे जाने लगे.
एक और दिलचस्प बात है भयंकर तूफ़ानों के नामों की सेवानिवृति. यदि कोई तूफ़ान विशेष कुछ ज़्यादा ही विनाशकारी साबित हो तो उसे नामों के सालाना सेट से रिटायर कर दिया जाता है. उसकी जगह कोई और नाम रखा जाता है. जैसे 2001 में ओपल को रिटायर करके उसकी जगह ओल्गा नाम को शामिल किया गया. रिटायरमेंट की व्यवस्था इसलिए है कि लोग विनाशकारी तूफ़ान को हमेशा याद रख सकें. ऐसे में कोई संदेह नहीं की कैटरिना नाम भी तूफ़ानों की दोहराई जाने वाली सूची से हटा लिया जाएगा.
अब जबकि अमरीका को प्रभावित करने वाले अटलांटिक महासागर के तूफ़ानों के नाम के टोटे पड़ने की संभावना है, क्या हम उम्मीद करें कि जॉर्ज बुश को ग्लोबल वार्मिंग के ख़तरे का अंदाज़ा हो सकेगा और वे पर्यावरण प्रदूषण के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्य क्योटो संधि में अमरीका को भी शामिल कर सकेंगे!
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