शुक्रवार, दिसंबर 29, 2006

उत्पीड़न की अमरीकी शब्दावली

ग्वांतानामो बंदी शिविरआतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमरीका ने कई मान्य परंपराओं और सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है. इनमें से एक है युद्धबंदियों और क़ैदियों के साथ मानवीय व्यवहार की सार्वभौम परंपरा.

क़ैदियों के उत्पीड़न का मामला अमरीकी अदालतों में नहीं आ पाए, इसके लिए विदेशी भूमि पर कई जेलें चलाई जा रही हैं. ग्वांतानामो जेल के बारे में तो काफ़ी कुछ सामने आ चुका है, लेकिन अमरीका संचालित अनेक गुप्त जेलों में क्या-क्या होता है, ये सिर्फ़ ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ही जानती है. इन जेलों से छूट पाए कुछ भाग्यशाली पूर्व क़ैदियों की मानें तो वहाँ अंतरराष्ट्रीय क़ायदे-क़ानूनों की कोई जगह नहीं है. क़ैदियों को प्रताड़ित किया जाता है और अमरीकी जेलरों ने इसके लिए अपनी सांकेतिक भाषा भी गढ़ रखी है. स्कॉट्स आल्मनाक 2007 नामक वार्षिक प्रकाशन में इस गुप्त भाषा के कुछ उदाहरण दिए गए हैं-

FUTILITY MUSIC
क़ैदियों के कमरे में लगातार घंटों तक तेज़ आवाज़ में ऐसा संगीत बजाना जो कि उनके लिए अबूझ हो. ख़ास कर वैसे गीतों को चुना जाता है जिनमें हिंसा, हमला आदि की बात हो. लगातार एक ही गीत को अनेक बार बजाने का भी तरीक़ा अपनाया जाता है. संगीत के अलावा जानवरों की आवाज़, डरावनी आवाज़, बच्चों के रोने की आवाज़ आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है.

THE BLACK ROOM
बिना खिड़की या रोशनदान वाला कमरा जिसकी दीवारें काली होती हैं. यहाँ क़ैदियों की कुटाई की जाती हैं, उन्हें भद्दी-भद्दी ग़ालियाँ दी जाती हैं.

FORCED GROOMING
क़ैदियों के शरीर के बाल हटा देना. ख़ास कर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ये तरीक़ा अपनाया जाता है, जिनके लिए दाढ़ी-मूँछ का धार्मिक महत्व है.

INTERNAL NUTRITION
भूख-हड़ताल कर रहे क़ैदियों को ज़बरदस्ती खाना खिलाना.

SLEEP ADJUSTMENT
क़ैदियों की नींद के पैटर्न को तहस-नहस कर देना.

WATER BOARDING
किसी क़ैदी को पानी में एक तख़्ते पर लिटा कर छोड़ देना. बीच-बीच में तख़्ते को कुछ देर के लिए पानी के भीतर डुबोना.

WATER PITT
एक टंकी जिसमें इतना पानी भरा गया हो कि किसी क़ैदी को डूबने से बचने के लिए अपने पंजों पर उचक कर खड़ा रहना पड़े.

ATTENTION SLAP
क़ैदी को पीड़ा पहुँचाने और डराने के उद्देश्य से मारा गया झापड़.

MOCK BURIAL(FAKE EXECUTION)
क़ैदियों को झूठा एहसास दिलाना कि बस अब उसका प्राणांत होने ही वाला है.

PRIDE AND EGO DOWN
क़ैदी के स्वाभिमान को चकनाचूर करने के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडे, जैसे-मुसलमान क़ैदी के आगे कुरान की तौहीन करना.

STRESS POSITIONS
क़ैदियों को घंटों तक ऐसी जगह रखना, जहाँ वो न तो ठीक से खड़े हो पाएँ, और न ही ठीक से बैठ पाएँ.

REMOVAL OF COMFORT ITEMS
क़ैदियों से वैसी चीज़ें छीन लेना जो कि उन्हें सुकून देती हों, जैसे- सिगरेट, नमाज़ पढ़ने के लिए काम आने वाली चटाई, क़ुरान आदि.

EXPLOIT PHOBIAS
क़ैदियों के मन में बसे डर को उसके ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना. जैसे- कोई क़ैदी कुत्ते से डरता हो तो उस पर कुत्ते छोड़ना.

उल्लेखनीय है कि अमरीका War on Terrorism के तहत पकड़े गए लोगों को जिनीवा संधि के तहत युद्धबंधियों को मिलने वाली सुविधाएँ नहीं देता है. अमरीका की दलील है कि पकड़े गए लोग युद्धबंदी नहीं बल्कि Illegal Enemy Combatants हैं. जब जून 2006 में ग्वांतानामो बे बंदी शिविर के तीन क़ैदियों ने आत्महत्या कर ली तो वहाँ तैनात एक जेलर ने इसे अमरीका के ख़िलाफ़ Asymmetrical Warfare की कार्रवाई बताया था.

शुक्रवार, दिसंबर 15, 2006

थोरियम युग में छा जाएगा भारत

थोरियम अयस्कभविष्य में ऊर्जा संकट की आशंका से पूरी दुनिया जूझ रही है, और डर के इस माहौल में एक बार फिर से थोरियम पॉवर की चर्चा फ़ैशन में आ गई है. इसे भविष्य का परमाणु ईंधन बताया जा रहा है. थोरियम के बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरेनियम की तुलना में यह कहीं ज़्यादा स्वच्छ, सुरक्षित और 'ग्रीन' है. और, इन सब आशावादी बयानों में भारत का भविष्य सबसे बेहतर दिखता है क्योंकि दुनिया के ज्ञात थोरियम भंडार का एक चौथाई भारत में है.

अहम सवाल ये है कि अब तक थोरियम के रिएक्टरों का उपयोग क्यों नहीं शुरू हो पाया है, जबकि इस तत्व की खोज हुए पौने दो सौ साल से ऊपर बीत चुके हैं? इसका सर्वमान्य जवाब ये है- थोरियम रिएक्टर के तेज़ विकास के लिए विकसित देशों की सरकारों और वैज्ञानिक संस्थाओं का सहयोग चाहिए, और इसके लिए वे ज़्यादा इच्छुक नहीं हैं. सबको पता है कि यूरेनियम और प्लूटोनियम की 'सप्लाई लाईन' पर कुछेक देशों का ही नियंत्रण है, जिसके बल पर वो भारत जैसे बड़े देश पर भी मनमाना शर्तें थोपने में सफल हो जाते हैं. इन देशों को लगता है कि थोरियम आधारित आणविक ऊर्जा हक़ीक़त बनी, तो उनके धंधे में मंदी आ जाएगी, उनकी दादागिरी पर रोक लग सकती है...और भारत जैसा देश परमाणु-वर्ण-व्यवस्था के सवर्णों की पाँत में शामिल हो सकता है.

थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर के विकास में खुल कर अनिच्छा दिखाने वालों में यूरोपीय संघ सबसे आगे है. शायद ऐसा इसलिए कि ज्ञात थोरियम भंडार में नार्वे के अलावा यूरोप के किसी अन्य देश का उल्लेखनीय हिस्सा नहीं है. (वैसे तो, रूस में भी थोरियम का बड़ा भंडार नहीं है, लेकिन वहाँ भविष्य के इस ऊर्जा स्रोत पर रिसर्च जारी है. शायद, थोरियम रिएक्टरों के भावी बाज़ार पर रूस की नज़र है!)

यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन(CERN) ने थोरियम ऊर्जा संयंत्र के लिए ज़रूरी एडीएस रिएक्टर(accelerator driven system reactor) के विकास की परियोजना शुरू ज़रूर की थी. लेकिन जब 1999 में एडीएस रिएक्टर का प्रोटोटाइप संभव दिखने लगा तो यूरोपीय संघ ने अचानक इस परियोजना की फ़ंडिंग से हाथ खींच लिया.

यूनीवर्सिटी ऑफ़ बैरगेन के इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़िजिक्स एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफ़ेसर एगिल लिलेस्टॉल यूरोप और दुनिया को समझाने की अथक कोशिश करते रहे हैं कि थोरियम भविष्य का ऊर्जा स्रोत है. उनका कहना है कि वायुमंडल में कार्बन के उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा खपत घटाना और सौर एवं पवन ऊर्जा का ज़्यादा-से-ज़्यादा दोहन करना ज़रूरी है, लेकिन ये समस्या का आंशिक समाधान ही है. प्रोफ़ेसर लिलेस्टॉल के अनुसार भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा सिर्फ़ परमाणु ऊर्जा ही दे सकती है, और बिना ख़तरे या डर के परमाणु ऊर्जा हासिल करने के लिए थोरियम पर भरोसा करना ही होगा.

उनका कहना है कि थोरियम का भंडार यूरेनियम के मुक़ाबले तीन गुना ज़्यादा है. प्रति इकाई उसमें यूरेनियम से 250 गुना ज़्यादा ऊर्जा है. थोरियम रिएक्टर से प्लूटोनियम नहीं निकलता, इसलिए परमाणु बमों के ग़लत हाथों में पड़ने का भी डर नहीं. इसके अलावा थोरियम रिएक्टर से निकलने वाला कचरा बाक़ी प्रकार के रिएक्टरों के परमाणु कचरे के मुक़ाबले कहीं कम रेडियोधर्मी होता है.

प्रोफ़ेसर एगिल लिलेस्टॉल के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन की थोरियम रिएक्टर परियोजना में वो उपप्रमुख की हैसियत से शामिल थे. उनका कहना है कि मात्र 55 करोड़ यूरो की लागत पर एक दशक के भीतर थोरियम रिएक्टर का प्रोटोटाइप तैयार किया जा सकता है. लेकिन डर थोरियम युग में भारत जैसे देशों के परमाणु ईंधन सप्लायर बन जाने को लेकर है, सो यूरोपीय संघ के देश थोरियम रिएक्टर के विकास में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे.

ख़ुशी की बात है कि भारत अपने बल पर ही थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा के लिए अनुसंधान में भिड़ा हुआ है. भारत की योजना मौजूदा यूरेनियम आधारित रिएक्टरों को हटा कर थोरियम आधारित रिएक्टर लगाने की है. कहने की ज़रूरत नहीं कि भारत को इसमें सफलता ज़रूर ही मिलेगी.