tag:blogger.com,1999:blog-12465571.post7555633953618096391..comments2023-10-20T10:08:13.617+00:00Comments on देश-दुनिया: अरुंधति राय का हिंसक मनहिंदी ब्लॉगर/Hindi Bloggerhttp://www.blogger.com/profile/04059710706721725509noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-12465571.post-68434811700732738532007-04-24T05:18:00.000+00:002007-04-24T05:18:00.000+00:00@ sanjay beganisanjay ji aaapne arundhati ke liye ...@ sanjay begani<BR/>sanjay ji aaapne arundhati ke liye jis tarah ke vicharon ko boya hai we humare samay ki ek prominent intellectual ke baare me sabse vahiyat vichhar hain. aapko arundhati par bolne se pahle unki saari rachnayon ko dhyan se padha hota.<BR/> Noam chomsky jaisa widwan amerika me hai jo lagataar amreeki sarkaar ke khilaf bolta aur likhta hai use bhi amreeki sarkaar deshdrohi nahi kahti, sarkaar ki aalochna karna kisi bhi jimmedaar nagrik ka kartavy hai. <BR/><BR/> samajh ke koi baat bole to achha rahega.<BR/><BR/>waise aapke nam e laga ki aap koi sahityakaar honge , main nahi janta aapko lekin aapke vichar is maamle me bahut hi fissadi hain.<BR/> aamin!!अनिलhttps://www.blogger.com/profile/03530168745955189924noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12465571.post-6334423536396407152007-02-22T19:25:00.000+00:002007-02-22T19:25:00.000+00:00अरुन्धती राय क्या लिखती हैं यह समय बतायेगा। लेकिन ...अरुन्धती राय क्या लिखती हैं यह समय बतायेगा। लेकिन उनके विचार समय-समय पर पढ़ते रहते हैं। आज सारे अच्छे विचार कुछ दूर चलकर संक्षिप्त उपलब्धि हासिल करके मुलायम हो जाते हैं। सच एक ऐसा कोलाज बन जाता है जिसको समझना मुश्किल हो जाता है कि यह सच है या कुछ और। बाजार ऐसा हाबी है हमारे ऊपर कि मरते हुये लोग दिखते नहीं। सैकड़ों आदमियों की जिंदगी-मौत की खबर से बड़ी खबर क्रिकेट मैच की हार-जीत हो जाती है। हम बड़े विकट समय से गुजर रहे हैं!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12465571.post-80039428083886442772007-02-22T06:43:00.000+00:002007-02-22T06:43:00.000+00:00यह अरुंधति राय जैसे लोगों की दुकानदारी के अलावा और...यह अरुंधति राय जैसे लोगों की दुकानदारी के अलावा और कुछ़ नहीं। उनकी देशद्रोही विचारधारा इराक और फिलीस्तीन के साथ कश्मीर को भी एक ही पाले में खडा कर देती है। यह देश का दुर्भाग्य है कि अरुंधति जैसे लोगों को ही इस देश में मान सम्मान और प्रचार प्राप्त होता है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12465571.post-84984883206692664422007-02-21T12:41:00.000+00:002007-02-21T12:41:00.000+00:00गनीमत है आजकल कम दिखाई दे रहे हें वरना अरुणधति के...गनीमत है <A HREF="http://laltu.blogspot.com" REL="nofollow"/> आजकल कम दिखाई दे रहे हें वरना अरुणधति के विरोध से नाराज हो जाते :) जैसे कि साल भर पहले हो गए थे। <BR/><A HREF="http://masijeevi.blogspot.com/2006/01/blog-post_18.html" REL="nofollow">इस </A> पोस्ट पर।<BR/><BR/>वैसे अपनी ज्यादा असहमति तो नहीं हे अरुणध्ाति से पर राज्यविरोध के लिए विरोध कभी कभी बाजार भाव बनाए रखने का लटका सा लगता हैमसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12465571.post-35502519240516524882007-02-21T10:43:00.000+00:002007-02-21T10:43:00.000+00:00क्रांति की अवधारणा में हिंसा को आम तौर पर अंतर्निह...क्रांति की अवधारणा में हिंसा को आम तौर पर अंतर्निहित माना जाता है। निस्संदेह रक्तहीन क्रांति अधिक उदात्त और वरेण्य है, लेकिन यदि क्रांति के लिए हिंसा अपरिहार्य हो जाए तो उससे बिदकना भी बहुत उचित नहीं है। फिर भी हिंसा रक्षात्मक दायरे तक ही सीमित रहे तो उचित है। प्रतिक्रियात्मक हिंसा सार्थक और कारगर नहीं होती। <BR/> <BR/>लेकिन किसी सच्चे लेखक या लेखिका के लिए सत्य और शब्द से बढ़कर कोई अन्य अमोघ हथियार नहीं होता। सत्य अपने आप में न्याय को हासिल कर सकने में समर्थ है। सत्य के साथ प्रेमभाव हो तो लक्ष्य और भी सहज हो सकता है। लेकिन जब प्रेम और धैर्य कारगर न हो तो सत्य को हिंसा का सहारा लेना पड़ सकता है। श्रीकृष्ण और श्रीराम के पौराणिक उदाहरण से हम यह सीख सकते हैं। <BR/><BR/>जब बुद्ध और गाँधी के रास्ते से क्रांति का लक्ष्य हासिल होने की संभावना नहीं हो तो फिर अस्त्र उठा लेना युगधर्म बन जाता है।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12465571.post-75469708460876380012007-02-21T05:55:00.000+00:002007-02-21T05:55:00.000+00:00भारत का शोषित वर्ग अरूंधति की भाषा नहीं समझता. उन्...भारत का शोषित वर्ग अरूंधति की भाषा नहीं समझता. उन्हे क्या फर्क पड़ता है, वे क्या लिखती है, क्या पुरस्कार पाती है.<BR/><BR/>देशद्रोहियों का हथियार उठाना उन्हे सही लग सकता है, मगर सैन्य कार्यवाहीयों में वे मानवाधिकार का हनन देखती है.Anonymousnoreply@blogger.com